बिहार की राजनीति में 'जंगलराज' शब्द का इतिहास: कैसे जन्मा, कैसे बना राजनीतिक हथियार?
हमारे राजनीतिक-सामाजिक जीवन में कुछ शब्द इतने ताकतवर हो जाते हैं कि वे नेताओं की छवि, करियर और पार्टी की किस्मत बदलने का माद्दा रखते हैं। 'जंगलराज' ऐसा ही एक शब्द है जिसने लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और उनकी पार्टी आरजेडी की राजनीति को दशकों तक प्रभावित किया। सामाजिक न्याय के नारे के साथ सत्ता में आए लालू यादव के साथ 'जंगलराज' शब्द का इतना गहरा संबंध बन गया कि यह पूरे बिहार की राजनीति का अहम हिस्सा बन गया।
'जंगलराज' शब्द की उत्पत्ति
यह शब्द किसी चुनावी घोषणा पत्र या राजनीतिक नारेबाजी से नहीं आया, बल्कि पटना हाई कोर्ट के एक जज की मौखिक टिप्पणी (oral observation) थी। खास बात ये है कि यह टिप्पणी अपराध या कानून व्यवस्था के केस में नहीं, बल्कि नगर निगम की लापरवाही और शहरी बदहाली के मामले में दी गई थी।
1997 में बिहार की राजनीति उथल-पुथल से गुजर रही थी। लालू यादव ने चारा घोटाले में फंसने के बाद इस्तीफा दिया और जेल जाते समय राज्य की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी। उसी वर्ष पटना में मॉनसून ने भारी तबाही मचाई, सड़कों और कॉलोनियों में गंदगी और कीचड़ का अंबार लग गया था। सोशल एक्टिविस्ट कृष्ण सहाय की याचिका पर पटना हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पटना को 'veritable hell' (नर्क जैसा) करार दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की,
"बिहार में राज्य सरकार नाम की कोई चीज नहीं है, जंगलराज कायम है, प्रशासन गिनेचुने भ्रष्ट नौकरशाह चला रहे हैं।"
कोर्ट ने पटना नगर निगम, जल निगम और शहरी विकास अधिकारियों की उदासीनता पर सख्त टिप्पणी की थी।
पटना भारत की सबसे गंदी राजधानी
कोर्ट ने कहा,
"इन संस्थाओं की कार्रवाई इतनी खराब और गैरजिम्मेदाराना है कि पटना शहर देश की सबसे गंदी राजधानी का दावा कर सकता है। संवैधानिक जिम्मेदारियों के प्रति इन संस्थाओं की विवेकहीनता की तीव्र निंदा होनी चाहिए। decades तक अपना दायित्व न निभाने वाली संस्थाओं की कोई जरूरत नहीं।"
जंगलराज का राजनीतिक सफर
'जंगलराज' शब्द किसी अपराध या अपहरण के संदर्भ में पहली बार नहीं आया, यह शहरी बदहाली और प्रशासनिक लापरवाही के लिए कोर्ट की उपमा थी। लेकिन 2000 के सियासी दौर में विपक्ष ने इस शब्द को कानून-व्यवस्था और अपराध के लिए लालू-राबड़ी शासन पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया।

राबड़ी देवी ने 2000 के चुनाव में रैली में कहा था,
"हां बिहार में जंगलराज है, जंगल में एक ही शेर रहता है, और सभी उस शेर का शासन मानते हैं।"
इशारा था लालू जी की ओर, लेकिन उसी दौर में बिहार में अपराध, अपहरण, रंगदारी, माफिया राज बहुत बढ़ गया था। लालू यादव पर भ्रष्टाचार, जातिवाद, तुष्टिकरण, अपराध संरक्षण और कानून-व्यवस्था बिगाड़ने के आरोप लगने लगे।
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं,
"चूंकि हाईकोर्ट ने जंगलराज शब्द बोला था, विपक्ष ने इसे गढ़ लिया और हर बार अपहरण, अपराध या सरकारी लापरवाही के मामले में इसे हथियार की तरह इस्तेमाल किया।"
लालू-राबड़ी के 15 साल के शासन में अपहरण, व्यवसायियों का पलायन, डॉक्टरों की किडनैपिंग, जातीय हिंसा जैसी घटनाओं ने 'जंगलराज' का नैरेटिव मजबूत किया।
नीतीश का सुशासन बनाम जंगलराज
2005 के चुनाव में नीतीश कुमार ने 'जंगलराज' के खिलाफ 'सुशासन' का नारा देकर राजनीतिक चक्रव्यूह रचा। सुशील मोदी जैसे नेताओं ने जंगलराज का मेटाफर लालू शासन से जोड़कर बीजेपी-एनडीए की राजनीति का बैनर बना दिया।
जंगलराज की छवि का असर
लालू यादव की "सामाजिक मसीहा" की छवि पर जंगलराज का ठप्पा लग गया। अपराध और प्रशासनिक लापरवाही के चलते उनकी छवि बदलने लगी। चुनावी हार के साथ आरजेडी सत्ता से बाहर हो गई और जंगलराज का नैरेटिव स्थायी रूप से बिहार की राजनीति और जनमानस का हिस्सा बन गया।
जंगलराज का आज तक असर
समय बीता, आरजेडी सत्ता से बाहर रही, लेकिन जंगलराज की गूंज 20 साल बाद भी तेजस्वी यादव की राजनीति पर असर डालती है। विपक्ष अब भी इस शब्द को चुनावी मुद्दा बना देता है।