मणिपुर में खुलने के बावजूद जारी हैं आवाजाही पर पाबंदियां

मणिपुर में खुलने के बावजूद जारी हैं आवाजाही पर पाबंदियां

इंफाल-नागालैंड राष्ट्रीय राजमार्ग-2, जो मणिपुर के लिए महत्वपूर्ण सप्लाई लाइन है, के फिर से खुलने के बाद भी राज्य में शांति प्रक्रिया को लेकर तनाव बना हुआ है। हाल ही में, दो कूकी-जो सशस्त्र समूहों — कूकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) — ने साफ किया है कि हाईवे खोलने को मीतई और कूकी-जो इलाकों के बीच बिना रोक-टोक आवाजाही की मंजूरी न माना जाए।

यह बयान ऐसे समय आया है जब इन दोनों संगठनों ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ "सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स" यानी युद्धविराम समझौते को एक साल के लिए बढ़ाने पर सहमति जताई है। इस समझौते के तहत समूहों ने मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने, संवेदनशील इलाकों से अपने शिविर हटाने और राजनैतिक समाधान के लिए काम करने का वादा किया है। 2008 से कई बार यह समझौता नवीनीकृत हो चुका है।

मई 2023 में मीतई और कूकी समुदायों के बीच हिंसक झड़पों के बाद से अब तक 260 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। हिंसा के बाद से दोनों समुदायों ने एक-दूसरे के क्षेत्रों में जाना बिल्कुल बंद कर दिया है। इसका उदाहरण हाल ही में देखा गया, जब एयर इंडिया की एक दुर्घटना में मारी गईं फ्लाइट अटेंडेंट लामनूंथे सिंहसन के परिजनों ने उनका शव मीतई इलाकों से बचाकर, रोड के ज़रिए कोहिमा पहुंचाया।

कूकी-जो काउंसिल ने हाल ही में गृह मंत्रालय के साथ चर्चा के बाद NH-2 खोलने पर सहमति जताई थी। KNO और UPF का कहना है कि कूकी-जो समूहों ने कभी हाईवे की पूरी तरह से नाकाबंदी नहीं की थी और उनकी अपील सिर्फ कांगपोकपी क्षेत्र में जरूरी सामान भेजने देने तक सीमित थी। दोनों संगठन अब भी संविधान के तहत शांति वार्ता और राजनीतिक समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं।

यह घटनाएं मणिपुर की जटिल सामाजिक-राजनीतिक स्थिति और वहाँ के विभिन्न समुदायों के बीच भरोसे को फिर से बनाने की आवश्यकता को उजागर करती हैं। अभी, खुली सड़कों के बावजूद दिलों और सीमाओं पर बनी दीवारें नहीं टूटी हैं।