चीन की विक्ट्री परेड: शक्ति प्रदर्शन से आगे, दुनिया को दिए गए प्रमुख संदेश

चीन की विक्ट्री परेड: शक्ति प्रदर्शन से आगे, दुनिया को दिए गए प्रमुख संदेश
China's Victory Parade

चीन ने द्वितीय विश्व युद्ध की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर, अपनी सबसे बड़ी सैन्य परेडों में से एक का आयोजन कर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह आयोजन केवल एक शक्ति प्रदर्शन नहीं था, बल्कि इसके जरिए चीन ने अपने पड़ोसियों, प्रतिद्वंद्वियों और सहयोगियों को कई अहम संदेश देने की कोशिश की।

जापान के लिए कड़ा संकेत

इस भव्य समारोह के केंद्र में जापान की भूमिका रही। चीन ने इसे औपचारिक तौर पर घोषित ‘विक्ट्री डे’ के तौर पर मनाते हुए जापान को ताइवान के मुद्दे पर सतर्क रहने की चेतावनी दी। बीजिंग का मुख्य मकसद यह दिखाना था कि उसका सैन्य बल इतना शक्तिशाली है कि जापान को किसी भी टकराव से पहले सोचना पड़े।

ताइवान को चेतावनी

चीन का यह भी संदेश था कि ताइवान के लिए प्रतिरोध अर्थहीन है। परेड के माध्यम से बीजिंग ने ताइवान के निवासियों को यह बताने की कोशिश की कि वे अपने नेताओं द्वारा बरगलाए जा रहे हैं और यदि युद्ध हुआ तो सत्ता का अंतर इतना बड़ा है कि परिणाम ताइवान के हित में नहीं होगा।

अमेरिका को चुनौती

परेड के पीछे चीन की बड़ी रणनीति अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों को अपनी ताकत का एहसास कराना था। चीनी विश्लेषकों के अनुसार, यह आयोजन अमेरिका-चीन संबंधों में नई सामरिक स्थिरता स्थापित करने की दिशा में एक कदम है। चीन, वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी केंद्रीयता और मजबूती दर्शाने की कोशिश कर रहा है।

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के लिए

चीन ने आंतरिक रूप से भी इस आयोजन का इस्तेमाल किया — अपने नागरिकों में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और समाजवादी मॉडल की श्रेष्ठता को दर्शाने के लिए। साथ ही, समाजवादी देशों बनाम साम्राज्यवादी राष्ट्रों की लड़ाई में अपनी भूमिका को ऐतिहासिक और सैद्धांतिक रूप से मजबूत करने की मंशा भी स्पष्ट दिखी।

बहुध्रुवीय दुनिया और गठबंधनों का प्रदर्शन

इस परेड के दौरान चीन ने रूस और उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ अपने संबंधों का भी स्पष्ट प्रदर्शन किया। इसका बड़ा मकसद यह संदेश देना था कि वह केवल अपनी क्षमता बढ़ाने पर ध्यान नहीं दे रहा, बल्कि वैश्विक साउथ की अगुवाई करते हुए एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूती देने की ओर है, जिसमें पश्चिमी देशों की भूमिका सिमटती जा रही है।

भारत की सतर्क कूटनीति

जहां एक ओर भारत-अमेरिका के बीच व्यापारिक और रणनीतिक संबंध सुढृढ़ हो रहे हैं, वहीं भारत ने चीन की इस सैन्य परेड में औपचारिक रूप से भाग नहीं लिया। इससे भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और संतुलन की नीति सामने आती है, जो इन दोनों महाशक्तियों के बीच विचारपूर्वक रास्ता चुनती है।