भाजपा बिहार में पलटवार की ताक में बैठी है
एनडीए यदि बिहार के घटनाक्रम से फ़िलहाल स्तब्ध है, तो इसका अर्थ यह क़तई नहीं है कि वह बिहार सरकार को अपने मन से शासन करने के लिए सम्पूर्ण संवैधानिक अधिकार (राज्य -केंद्र के बीच ) देकर चुप बैठ जाएगी। यह कभी हो नहीं सकता कि उसके अपने अपमान का घूँट पीकर बिहार के वर्तमान सरकार को निर्बाध रूप से चलने दें।वैसे उसे कई राज्यों में अपने पराजय रूपी अपमान को झेलना पड़ा है, लेकिन अपमान को गाँठ बांधकर आक्रमण -डॉक्टर -आक्रमण करना उसकी एकमात्र आदत है।
पश्चिम बंगाल में पाने षड्यंत्र के सारे घोड़े खोलने के बाद हाथ क्या आया । पंजाब में तिल का ताड़ बनाकर वहाँ अपने को इस तरह समूह नाश किया जिसके कारण आज वहाँ की विधानसभा में उसका नाम भी नहीं है।यदि एकाध दुंढ़े से मिल भी जाए तो यही कहावत चरितार्थ होती है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र इसके ताज़ा उदाहरण हैं जहाँ अपनी दुर्गति कराने के बाद फिर से सत्ता में आ गई।आज रजिणितज्ञों का उद्देश्य भी तो यही हो है की येन-करण-प्रकरेणा सत्ता उनकी हो जाए।
पिछले तीस वर्षों में कभी लालू तो कभी नीतीश कुमार की पार्टी सत्ता में रही
बिहार के लोगों का कहना है कि नीतीश कुमार ने भाजपा को छोड़कर उसकी बढ़ती रफ्तार को रोकने का प्रयास किया है। इससे बिहार का विकास होगा। वैसे यह सच है कि लगभग तीस वर्ष से बिहार में जो कुछ हुआ, उसकी नाकामी और उपलब्धि का श्रेय लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को ही सदैव दिया जाता रहेगा, क्योंकि इतने लंबे समय तक बिहार में इन्हीं दोनों नेताओं का शासन रहा है।
वैसे आदिकाल से ही बिहार पलायन के लिए मशहूर रहा है, लेकिन इन दोनों के कार्यकाल में जो पलायन हुआ, उसे आप देश के किसी शहर में किसी कस्बे में देख सकते हैं। कहते हैं इतने वर्षों में राज्य के विकास के लिए कोई कार्य किया ही नहीं गया। सभी अपने अपना स्वार्थ सिद्धि करते रहे। परिणाम यह हुआ कि राज्य में रहकर कुछ धनपति बन गए और कुछ अपनी जिंदगी किसी प्रकार गुजरते रहे।